Tuesday, August 16, 2016

पथ

पथ चलती जाऊँ जीवन पथ पर, आॅखों में एक लिए सवाल
क्या सम्पूर्ण  जगत है सारा, मन में रहता  यही  खयाल
कुछ  चलती  कुछ  ठहर  गई हूँ , अविरल मन व्याकुल परिणाम
जीवन और पथ साथ है दोनों,  फिर कैसे  मै करूँ विश्राम
ज्यों -ज्यों पग आगे बढते है, पीछे छूट रहा संसार
हर पग पर रोड़ा बनकर के, अटक रहे हैं  कई सवाल
विशद ख्वालों के संग चलती रही, ढूढ रही कुछ अजीब सवाल
 जीवन वामपंथी रहा क्योंकि मेरे, जब व्यथ॔ किया न कोई काम
कहने को रुकता हर राही, पर न रुका कभी संसार
चलना है चलते ही रहेंगे, मनोज में लेकर अविराम सवाल

                                    -'नीरू श्रीवास्तव '

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