Friday, February 17, 2017

इन्तजार

मै हताश गम्भीर
दूर से उसे चुपके से देखती थी,
काश ! कोई पवन ऐसी चल जाए-----
जो ये पतझड बनकर ही सही
मुझपर बरस जाए-----
 किन्तु--- वो दुनियाँ से बेखबर
काले वादलों की तरह---
रेशम की छाँव मे लुप्त
हिमालय की गोद में समाया---
जीवन के दो रंग लिए
एक तनहा एक संग लिए--
बेअसर बेआवाज
दद॔ में लुप्त गूजती रही--
आवाज वीरानो में
आखों में इन्तजार----
और फिर--इन्तजार----------
नीरू"निराली"

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