Saturday, February 18, 2017

फिर आ जाओ


किया था तुमने जब स्वीकार
लुटाकर सब भूॅलों पर प्यार,,
बिछी थी अधरों पर मुस्कान
ह्दय में उठा था तब मनुहार--!
कहाॅ हो फिर आ जाओ--?

टूटते स्वर को लिया था बाॅध
दी थी मेरे गीतों को एक तान,
जहाॅ को दिये थे मेरे बोल
बना दी जिसने एक पहचान,
कहाॅ हो फिर आ जाओ--?

भर दिये थे तुमने जज्बात
आलिंगन कर मेरे एहसास
ठहरे पानी में हो बरसात
कहीं न बीते ये मधुमास,
कहाॅ हो फिर आ जाओ--?

विरह व्यथा बढती दिनरात
प्राण कहते न अपनी बात
नैनों से हो निसदिन बरसात
करुणामय झुलसी काया जात,
कहाॅ हो फिर आ जाओ--?

नीरू"निराली"

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