Sunday, January 28, 2018

गज़ल

तू ही पूजा है तू ही आराधना है
कौन कहता तू मेरी आलोचना है

शब्द वीणा वादिनी चुनती तेरे है
और सिखाती है कि कैसे बोलता है

प्रेम में जीना  ओ मरना सीख लेते
नफरतों की बात क्या फिर सोचना है

हम चढा देते शहीदों पर गुलिस्ते
फूल फिर माला में क्यों कर गूँथना है

मखलमी चादर में सोती है सियासत
उसको क्या मालूम किसको जागना है

हारकर क्यों वक्त से बैठा मुसाफिर
सोचना तुझको है कैसे जीतना है

ढूबता सूरज उगेगा फिर सबेरे
रात को पहलू में रखकर ताकना है

नीरू"निराली

Thursday, January 18, 2018

शेर

सहरी दुपहरी शाम सब आलम सभी है रात के
क्यों रात इक पहर में है ये आज तक समझी नहीं

गजल

ज़िद में आई तो बदनाम कर दूँगी
तेरी कसम मै तुझे बेनाम कर दूँगी

ऐ मुहब्बत अपनी हद में रह "वरना"
कत्ल तेरा सरेआम कर दूँगी

Wednesday, January 17, 2018

गजल

बन्द पलकों में कहानी मेरी
हर नज़र फिर भी दीवानी मेरी--!

फूल खिलते है बहारों में मगर
अधखिली है रातरानी मेरी--!

सब नजारों से कहो दूर रहें
ढल चुकी अब तो जवानी मेरी--!

आइना ढूढ रहा मुझ सा हंसी
पूछता मुझसे जुबानी मेरी--!

जब मिले वो तो वफा रूठ गई
हाल दिल के भी न जानी मेरी--!

आसमानों पे छा रहे बादल
प्यास बारिस से पुरानी मेरी--!

दिल लिया है तो ये साँसे ले जा
मौत न बिन तेरे आनी मेरी--!

गीत

तू उगता सूरज अम्बर का मैं धानी परिधान 
कैसे न तुझको हो अभिमान 

सुख भी सौपा दुःख भी सौपा सौपी आस प्यास भी
सीप सी प्यासी रही जलधि में बूँद बूँद को तरसी 
सो जाता है मुझ पर सागर रोज़ ही चादर तान 
कैसे अब बचेगी मेरी जान------

धरा करी है तुझे निछाबर,आसमान उपहार दिया 
अपने जीवन का हर एक पल मैंने तेरे नाम किया 
खुद की दुनिया भूल गई मैं तेरा ही ध्यान
तू ही अब मेरे दिल की शान -------