तू उगता सूरज अम्बर का मैं धानी परिधान
कैसे न तुझको हो अभिमान
सुख भी सौपा दुःख भी सौपा सौपी आस प्यास भी
सीप सी प्यासी रही जलधि में बूँद बूँद को तरसी
सो जाता है मुझ पर सागर रोज़ ही चादर तान
कैसे अब बचेगी मेरी जान------
धरा करी है तुझे निछाबर,आसमान उपहार दिया
अपने जीवन का हर एक पल मैंने तेरे नाम किया
खुद की दुनिया भूल गई मैं तेरा ही ध्यान
तू ही अब मेरे दिल की शान -------
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