Sunday, January 28, 2018

गज़ल

तू ही पूजा है तू ही आराधना है
कौन कहता तू मेरी आलोचना है

शब्द वीणा वादिनी चुनती तेरे है
और सिखाती है कि कैसे बोलता है

प्रेम में जीना  ओ मरना सीख लेते
नफरतों की बात क्या फिर सोचना है

हम चढा देते शहीदों पर गुलिस्ते
फूल फिर माला में क्यों कर गूँथना है

मखलमी चादर में सोती है सियासत
उसको क्या मालूम किसको जागना है

हारकर क्यों वक्त से बैठा मुसाफिर
सोचना तुझको है कैसे जीतना है

ढूबता सूरज उगेगा फिर सबेरे
रात को पहलू में रखकर ताकना है

नीरू"निराली

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