तू ही पूजा है तू ही आराधना है
कौन कहता तू मेरी आलोचना है
शब्द वीणा वादिनी चुनती तेरे है
और सिखाती है कि कैसे बोलता है
प्रेम में जीना ओ मरना सीख लेते
नफरतों की बात क्या फिर सोचना है
हम चढा देते शहीदों पर गुलिस्ते
फूल फिर माला में क्यों कर गूँथना है
मखलमी चादर में सोती है सियासत
उसको क्या मालूम किसको जागना है
हारकर क्यों वक्त से बैठा मुसाफिर
सोचना तुझको है कैसे जीतना है
ढूबता सूरज उगेगा फिर सबेरे
रात को पहलू में रखकर ताकना है
नीरू"निराली
कौन कहता तू मेरी आलोचना है
शब्द वीणा वादिनी चुनती तेरे है
और सिखाती है कि कैसे बोलता है
प्रेम में जीना ओ मरना सीख लेते
नफरतों की बात क्या फिर सोचना है
हम चढा देते शहीदों पर गुलिस्ते
फूल फिर माला में क्यों कर गूँथना है
मखलमी चादर में सोती है सियासत
उसको क्या मालूम किसको जागना है
हारकर क्यों वक्त से बैठा मुसाफिर
सोचना तुझको है कैसे जीतना है
ढूबता सूरज उगेगा फिर सबेरे
रात को पहलू में रखकर ताकना है
नीरू"निराली
No comments:
Post a Comment