Monday, February 19, 2018

गज़ल

पत्थरों पर वो अपना नाम लिखा करती है
होके दीवानी सी राहों में फिरा करती है

अपने हालात पे ना गुफ्तगू ही की जिसने
तेरे जाने से वो मर-मर के जिया करती है--!

क्या बताऊं मै तुम्हे कितनी हया है उसमें
अपनी परछाई से खुद आप डरा करती है--!

कोई उसके लिए क्यों अर्ज दुआँएं कर दें
सबका दामन जो दुआँओ से भरा करती है--!

कोई धागा न कोई मोती न कोई बंधन
जाने वो कौन से रिस्ते में बंधा करती है--!

तुने जो दर्द छुपा रख्खा है दिल में अपने
आह भर-भर के तेरा दर्द सुना करती है--!

कोई अहसास तेरे दिल ने दिया ना जिसको
रोज झूठे ही खयालों में जिया करती है-

गम के पहलू में कहाँ होती है रातें रोशन
दिल के आँगन में चिरागों सी बुझा करती है--!

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